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कविता

समय का पहिया

गोरख पांडेय


समय का पहिया चले रे साथी
समय का पहिया चले
फौलादी घोड़ों की गति से आग बरफ में जले रे साथी
समय का पहिया चले
रात और दिन पल पल छिन
आगे बढ़ता जाए
तोड़ पुराना नए सिरे से
सब कुछ गढ़ता जाए
पर्वत पर्वत धारा फूटे लोहा मोम-सा गले रे साथी
समय का पहिया चले
उठा आदमी जब जंगल से
अपना सीना ताने
रफ्तारों को मुट्ठी में कर
पहिया लगा घुमाने
मेहनत के हाथों से
आजादी की सड़कें ढले रे साथी
समय का पहिया चले


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